लकीरों को मिटाना चाहता हूँ।
हदों के पार जाना चाहता हूँ।
विरासत में मिले हैं चन्द सपने,
उन्हें सूरज दिखाना चाहता हूँ।
सुफल लगते हैं मेहनत के शजर पर,
ये बच्चों को बताना चाहता हूँ।
बहुत ख़ुश दीखती हो तुम कि जिसमें,
वही किस्सा सुनाना चाहता हूँ।
मेरी ग़ज़लो मैं अपनी मौत के दिन,
तुम्हें ही गुनगुनाना चाहता हूँ।