ये ग़ज़ल भाई गौतम राजरिशी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना, उनकी जिजीविषा, उनके अदम्य हौसले, उनकी अटूट देशभक्ति, उनके निर्मल मन, उनके सच्चे साहित्यकार और प्यारी भतीजी तनया को समर्पित है-
ग़ज़ल
पांव के छाले या अपना रास्ता देखूं.
मुश्किलें देखूं या अपना हौसला देखूं.
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उसमें सब तो हैं वफ़ा, ईमान, ख़ुद्दारी,
उसमें अब इनके अलावा और क्या देखूं.
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काश ये बारूद के बादल हटें नभ से,
फूल, तितली, रंगों का इक सिलसिला देखूं.
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पास में संवेदनाएं तक नहीं जिनके,
उन अमीरों की तरफ़ मैं क्यों भला देखूं.
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मेरा पहला और अंतिम ख़्वाब बस ये है,
घर अंधेरों का सदा जलता हुआ देखूं.
27 टिप्पणियां:
khoobsurat ...ghazal lajawab matla aur pahela sher
बस सच की ओर देखूं..जब भी देखूं उजाला की ओर देखूं ..बढ़िया ग़ज़ल..राजरिशि जी के स्वास्थ्य लाभ के लिए भगवान से प्रार्थना करता हूँ ..शीघ्र ही ठीक हो जाए.....
बढ़िया ग़ज़ल..बधाई!!!
नमस्कार संजीव जी,
खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने
गजल बहुत प्यारी है और बिटिया की प्यारी प्यारी तस्वीरों ने उसमें और रंग भर दिये हैं।
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बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?
प्रिय भाई संजीव गौतम जी
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई
मतला पढ़ते ही रमेश रंजक के गीत की
पंक्तियों का स्मरण हो आया:
"धूप में जब भी जले हैं पाँव सीना तन गया है
और आदमक़द हमारा जिस्म लोहा बन गया है"
आपकी ग़ज़ल का ख़ूबसूरत मतला भी इसी उच्च श्रेणी का है. साधुवाद!
देश और कलम के कर्मठ सिपाही भाई गौतम राजऋषि के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए मंगल कामनाओं के साथ
सप्रेम
द्विज
khoobsurat gazal,khoobsurat khwaab.....tanya ko mera aashish
gautam ji ke liye likhi ye gazal achhee hai aur bahut pasand aayee... bahut hi motivating hai ye gazal.. zindagee ke har pahalu ko aapne samaahit kiyaa hai .. dhero badhaayee
tanayaa ka dusaraa naam pihoo hai... ise bahut pyaar
arsh
ek sundar gazal ......khubsoorat abhiwyakti
काश ये बारूद के बादल हटें नभ से,
फूल, तितली, रंगों का इक सिलसिला देखूं.
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कितना सही कहा आपने....काश यह हो पाता.... बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति....सुन्दर रचना...वाह !!
पास में संवेदनाएं तक नहीं जिनके,
उन अमीरों की तरफ़ मैं क्यों भला देखूं.
बेहतरीन ग़ज़ल
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
काश ये बारूद के बादल हटें नभ से,
फूल, तितली, रंगों का इक सिलसिला देखूं.
Sab ki yahi dua hai.
ग़ज़लपांव के छाले या अपना रास्ता देखूं.
मुश्किलें देखूं या अपना हौसला देखूं. .
bahut khoob.... bilkul un si jin ko samarpit hai...!
काश ये बारूद के बादल हटें नभ से,
फूल, तितली, रंगों का इक सिलसिला देखूं.....
लाजवाब शेर है ......... यूँ तो पूरी ग़ज़ल कमाल की है ....... गौतम जी के स्वस्थ की शुभ कामनाओं के साथ .........
मतला पढ़ते ही मन खुशी से झूम गया. दूसरा शेर भी बहुत शानदार है. मुकम्मल गजल ही भरपूर है. आखिरी शेर तो एक बार फिर शुरू से पढ़ने को मजबूर कर गया.
इन दिनों व्यस्तताये ज्यादा हैं क्या? गूगल टॉक पर भी ढूँढने की कई बार कोशिश की. संदेश भी डाला लेकिन रेस्पोंस नहीं मिला.
उसमें सब तो हैं वफ़ा, ईमान, ख़ुद्दारी,
उसमें अब इनके अलावा और क्या देखूं.
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काश ये बारूद के बादल हटें नभ से,
फूल, तितली, रंगों का इक सिलसिला देखूं.
laa
जवाब गज़ल है। देश के गौरव और कलम के कर्मठ सिपाही ,जिन्दादिल गौतम राजऋषि के शीघ्र स्वस्थ के लिये कामना करती हूँ उन्हें तथा तान्या के लिये आशीर्वाद आपका भी धन्यवाद्
संजीव जी, हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । इंटरनेट के समुद्र में ऐसे तो हर क्लिक पर मुलाकातें होती रहती हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसी मुलाकातें भी होती हैं कि लगता है जैसे खुद से मिले हों। "दो पाटन के बीच' पर आने के लिए धन्यवाद।
बहरहाल, आपके प्रोफाइल के माध्यम से "कभी तो...' पर पहुंचा। गौतम राजरिशी जी की स्वास्थ्य कामना को समर्पित आपके गजलों को पढ़ा। इसके बाद 1 अक्तूबर की डायरीनुमा पोस्ट भी पढ़ा। दोनों पोस्ट उच्च श्रेणी की रचना हैं। यह डायरी मन को भा गयी। सच में हम सभी कहीं-न-कहीं एक-दूसरे से मिले थे। शायद हजारों-हजार साल पहले, शायद हजारों-हजार कोस पहले या फिर हजारों-लाखों की भीड़ में हम एक-दूसरे के करीब हुए थे। हिंदू माइथोलॉजी में तो इस दर्शन को माना भी गया है।
आपकी रचना से प्रभावित हूं।
आपकी शेर
पांव के छाले या अपना रास्ता देखूं.
मुश्किलें देखूं या अपना हौसला देखूं.
एक पुरानी शेर
मंजिल न मिले तो गम न करना
मंजिल की जुस्तजू में तेरा आरजू तो था
सधन्यवाद
रंजीत
हम तो उलझ कर रह गये संजीव जी....तस्वीरें और ग़ज़ल में।
आह..मतला तो जैसे सीधा दिल से निकल कर आया है। आपके शेरों का जादू सर चढ़ कर बोलता है। "फूल तितली रंगों का इक सिलसिला देखूं" एक बेमिसाल शेर बना है।
बहुत खूब सर और इस सम्मान का शुक्रिया...अब काफी बेहतर हूं।
"नई ग़ज़ल" में छपी आपकी ग़ज़ल बेहतरीन है। आखिरी शेर पूरा नहीं छप पाया है तो उत्सुकता बनी हुई है। "देखना इस बात पर इक दिन ज़िरह होगी ज़रूर" का मिस्रा-ऊला गायब है। मेहरबानी होगी जो सुनायें मुझे....
aadab ! aapke blog ki urvarta ne nai kopal paida kar di aur kuchh himmat de di... jo kuchh kavya main likhne ka sahas ho gaya ..nahin to shekhchilly to thehra 'shekhchilly'
बेहतरीन गज़ल । गौतम भाई जल्दी स्वास्थ्य लाभ करें यही शुभेच्छा ।
प्रिय संजीव भाई गौतम इसके हकदार हैं आपने यह लिख पोस्ट कर बहुत सराहनीय काम किया है=ब्लॉग जगत आपके इस प्रयास से धनी हुआ है,आशा है इससे और लोग भी सीखेंगे संवेदनशील होना ,संवेदना -पर पीड़ा को जब अपनी पीड़ाभो जाती है तो कोई पराया न रह अपना हो जाता है
पुन: अच्छे कार्य व अच्छी रचना पर बधाई व
दीप सी जगमगाती जिन्दगी रहे
सुख-सरिता घर-मन्दिर में बहे
श्याम सखा श्याम
"आओ मिल कर फूल खिलाएं, रंग सजाएं आँगन में
दीवाली के पावन में , एक दीप जलाएं आंगन में "
......दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ |
behatareen gazal........gautam ji ke liye likhkar aapne iska maan aur badha diya .........bahut khoob.
aapko bhi sapariwaar deepawali ki mangalkaamnaayen. dhanyawaad.
भाई संजीव जी !
दीपावली की शुभकामनाएँ ! नवल दीपमालिका आपको और आपके परिवार को उजास से भर दे यही कामना है !
आपकी ग़ज़ल ने तो मन मोह लिया ,भाई गौतम जी की प्यारी बिटिया को समर्पित यह रचना भी उसी की तरह खूबसूरत है !
पांव के छाले या अपना रास्ता देखूं.
मुश्किलें देखूं या अपना हौसला देखूं.,,,( बेहद खूबसूरत मतला )
उसमें सब तो हैं वफ़ा, ईमान, ख़ुद्दारी,
उसमें अब इनके अलावा और क्या देखूं...........( क्या कहने हैं )
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काश ये बारूद के बादल हटें नभ से,
फूल, तितली, रंगों का इक सिलसिला देखूं.........(.वाह )
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गीत की ध्रुव पंक्तियों पर ग़ज़ल लिखने के सुझाव का स्वागत है , कोशिश करूँगा !
कभी ग्वालियर आयें तो मिलिएगा !
पांव के छाले या अपना रास्ता देखूं.
मुश्किलें देखूं या अपना हौसला देखूं.
बहुत खूब!!
मेरा पहला और अंतिम ख़्वाब बस ये है,
घर अंधेरों का सदा जलता हुआ देखूं.nice
बहुत अच्छी ग़ज़ल गौतम जी।
काश ये बारूद के बादल हटें नभ से,
फूल, तितली, रंगों का इक सिलसिला देखूं.
bahut hi khoobsurat sher
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